Wednesday, 5 August 2015

सोमनाथ मन्दिर

सोमनाथ मंदिर एक महत्वपूर्ण हिन्दू मंदिर है जिसकी गिनती १२ ज्योतिर्लिंगों में सर्वप्रथम ज्योतिर्लिंगके रूप में होती है । गुजरात के सौराष्ट्र क्षेत्र के वेरावल बंदरगाह में स्थित इस मंदिर के बारे में कहा जाता है कि इसका निर्माण स्वयं चन्द्रदेव ने किया था । इसका उल्लेख ऋग्वेद में भी मिलता है । इसे अब तक १७ बार नष्ट किया गया है और हर बार इसका पुनर्निर्माण किया गया ।

सोमनाथ का बारह ज्योतिर्लिगों में सबसे प्रमुख स्थान है। सोमनाथ मंदिर विश्व प्रसिद्ध धार्मिक व पर्यटन स्थल है। मंदिर प्रांगण में रात साढे सात से साढे आठ बजे तक एक घंटे का साउंड एंड लाइट शो चलता है, जिसमें सोमनाथ मंदिर के इतिहास का बडा ही सुंदर सचित्र वर्णन किया जाता है। लोककथाओं के अनुसार यहीं श्रीकृष्ण ने देहत्याग किया था। इस कारण इस क्षेत्र का और भी महत्व बढ गया। ऐसी मान्यता है कि श्रीकृष्ण भालुका तीर्थ पर विश्राम कर रहे थे। तब ही शिकारी ने उनके पैर के तलुए में पद्मचिन्ह को हिरण की आंख जानकर धोखे में तीर मारा था। तब ही कृष्ण ने देह त्यागकर यहीं से वैकुंठ गमन किया। इस स्थान पर बडा ही सुन्दर कृष्ण मंदिर बना हुआ है।

सोमनाथ मन्दिर इतिहास

सागर तट से मंदिर का दृश्य सर्वप्रथम एक मंदिर ईसा के पूर्व में अस्तित्व में था जिस जगह पर द्वितीय बार मंदिर का पुनर्निर्माण सातवीं सदी में वल्लभी के मैत्रक राजाओं ने किया । आठवीं सदी में सिन्ध के अरबी गवर्नर जुनायद ने इसे नष्ट करने के लिए अपनी सेना भेजी । प्रतिहार राजा नागभट्ट ने 815 ईस्वी में इसका तीसरी बार पुनर्निर्माण किया । इस मंदिर की महिमा और कीर्ति दूर-दूर तक फैली थी । अरब यात्री अल-बरुनी ने अपने यात्रा वृतान्त में इसका विवरण लिखा जिससे प्रभावित हो महमूद ग़ज़नवी ने सन १०२४ में कुछ ५,००० साथियों के साथ सोमनाथ मंदिर पर हमला किया, उसकी सम्पत्ति लूटी और उसे नष्ट कर दिया । ५०,००० लोग मंदिर के अंदर हाथ जोडकर पूजा अर्चना कर रहे थे ,प्रायः सभी कत्ल कर दिये गये।
इसके बाद गुजरात के राजा भीम और मालवा के राजा भोज ने इसका पुनर्निर्माण कराया । सन 1297 में जब दिल्ली सल्तनत ने गुजरात पर क़ब्ज़ा किया तो इसे पाँचवीं बार गिराया गया । मुगल बादशाह औरंगजेब ने इसे पुनः 1706 में गिरा दिया । इस समय जो मंदिर खड़ा है उसे भारत के गृह मन्त्री सरदार वल्लभ भाई पटेल ने बनवाया और पहली दिसंबर 1995 को भारत के राष्ट्रपति शंकर दयाल शर्मा ने इसे राष्ट्र को समर्पित किया ।
१९४८ में प्रभासतीर्थ प्रभास पाटण के नाम से जाना जाता था। इसी नाम से इसकी तहसील और नगर पालिका थी। यह जूनागढ रियासत का मुख्य नगर था। लेकिन १९४८ के बाद इसकी तहसील, नगर पालिका और तहसील कचहरी का वेरावल में विलय हो गया। मंदिर का बार-बार खंडन और जीर्णोद्धार होता रहा पर शिवलिंग यथावत रहा। लेकिन सन १०२६ में महमूद गजनी ने जो शिवलिंग खंडित किया, वह यही आदि शिवलिंग था। इसके बाद प्रतिष्ठित किए गए शिवलिंग को १३०० में अलाउद्दीन की सेना ने खंडित किया। इसके बाद कई बार मंदिर और शिवलिंग खंडित किया गया। बताया जाता है आगरा के किले में रखे देवद्वार सोमनाथ मंदिर के हैं। महमूद गजनी सन १०२६ में लूटपाट के दौरान इन द्वारों को अपने साथ ले गया था। सोमनाथ मंदिर के मूल मंदिर स्थल पर मंदिर ट्रस्ट द्वारा निर्मित नवीन मंदिर स्थापित है। राजा कुमार पाल द्वारा इसी स्थान पर अन्तिम मंदिर बनवाया गया था। सौराष्ट्र के मुख्यमन्त्री उच्छंगराय नवल शंकर ढेबर ने १९ अप्रैल १९४० को यहां उत्खनन कराया था। इसके बाद भारत सरकार के पुरातत्व विभाग ने उत्खनन द्वारा प्राप्त ब्रह्मशिला पर शिव का ज्योतिर्लिग स्थापित किया है। सौराष्ट्र के पूर्व राजा दिग्विजय सिंह ने ८ मई १९५० को मंदिर की आधार शिला रखी तथा ११ मई १९५१ को भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने मंदिर में ज्योतिर्लिग स्थापित किया। नवीन सोमनाथ मंदिर १९६२ में पूर्ण निर्मित हो गया। १९७० में जामनगर की राजमाता ने अपने स्वर्गीय पति की स्मृति में उनके नाम से दिग्विजय द्वार बनवाया। इस द्वार के पास राजमार्ग है और पूर्व गृहमन्त्री सरदार बल्लभ भाई पटेल की प्रतिमा है। सोमनाथ मंदिर निर्माण में पटेल का बडा योगदान रहा। मंदिर के दक्षिण में समुद्र के किनारे एक स्तंभ है। उसके ऊपर एक तीर रखकर संकेत किया गया है कि सोमनाथ मंदिर और दक्षिण ध्रुव के बीच में पृथ्वी का कोई भूभाग नहीं है। मंदिर के पृष्ठ भाग में स्थित प्राचीन मंदिर के विषय में मान्यता है कि यह पार्वती जी का मंदिर है। सोमनाथजी के मंदिर की व्यवस्था और संचालन का कार्य सोमनाथ ट्रस्ट के अधीन है। सरकार ने ट्रस्ट को जमीन, बाग-बगीचे देकर आय का प्रबंध किया है। यह तीर्थ पितृगणों के श्राद्ध, नारायण बलि आदि कर्मो के लिए भी प्रसिद्ध है। चैत्र, भाद्र, कार्तिक माह में यहां श्राद्ध करने का विशेष महत्व बताया गया है। इन तीन महीनों में यहां श्रद्धालुओं की बडी भीड लगती है। इसके अलावा यहां तीन नदियों हिरण, कपिला और सरस्वती का महासंगम होता है। इस त्रिवेणी स्नान का विशेष महत्व है।

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